पति की तबीयत खराब हुई तो महिला बन गई टैक्सी चालक… रेखा पांडे हुई वायरल

नई दिल्ली: दुनिया का कोई भी ऐसा काम नहीं जो महिलाएं ना कर सकें,फिर चाहे वो घर द्वार का काम हो या बाहर नौकरी कर पैसा कमाना। वह दोनों ही तरह के कामों को निर्पुणता से करती है। ऐसे ही गुणों से भरपूर उत्तराखण्ड की रेखा लोहनी पांडे ने जो की राज्य की पहली महिला ड्राइवर है। रेखा की परिश्रम और साहसिकता की तारीफ में राज्य के परिवहन मंत्री चंदन रामदास ने खासा सम्मान व्यक्त किया है। उन्हें महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल के रूप में देखा जा रहा है, जिन्होंने समाज की परंपराओं को तोड़कर अपनी स्वतंत्रता का अधिकार जताया है। इस क्षेत्र में हाथ डाला है जिसे पुरुष वर्ग ने भर रखा है । रामदास ने रेखा की सराहना करते हुए बताया की रेखा का फैसला उनके परिवार की खुशहाली के साथ-साथ दूसरों को भी प्रेरणा देगा। वह अपने क्षेत्र में एक आदर्श बन गई हैं, जो दूसरों के लिए एक उदाहरण है।
रेखा लोहनी पांडे उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के गरुड़ क्षेत्र के भेटा की रहने वाली है। ससुराल अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में है। वह एक पढ़ी-लिखी महिला हैं। उन्होंने डबल एमए के साथ उन्होंने मास्टर्स इन सोशल वर्क और वकालत की पढ़ाई की है लेकिन पिछले दो महीनों से रानीखेत से हल्द्वानी के बीच टैक्सी चला रही हैं। यह उनके परिवार के भरण-पोषण के लिए एक जरूरी कदम था । स्टीयरिंग थामना एक चुनौतीपूर्ण काम हो सकता था ,लेकिन इन्होंने इसे सफलतापूर्वक किया है। इस प्रयास से वह दूसरों को भी प्रेरित कर रही है।
रेखा के पति, मुकेश चंद्र पांडे, फौज से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। सेवानिवृत्ति के बाद मुकेश ने ट्रैवल के व्यवसाय की शुरुआत की थी। मुकेश की तबीयत अचानक बिगड़ गयी, जिसके कारण वह काम नहीं कर सके। पहले उन्होंने टैक्सी ड्राइवर नियुक्त किया लेकिन यह नुकसानदायक साबित होता गया। इसके बाद रेखा ने निर्णय लिया की वह खुद ही टैक्सी चलायेंगी। शुरुआत में, कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ा और कुछ लोगों ने उन्हें हास्य का रूप दिया और मज़ाक़ बनाया। इस निर्णय को लेना तीन बेटियों की मां होते हुए और घर की चारदीवारी से बाहर आना इतना आसान नहीं था। रेखा इन बातों से बिल्कुल नहीं घबराई और नजरअंदाज कर काम करती रही ।
रेखा प्रतिदिन सुबह सवारियां ढूंढती हुई रानीखेत और हल्द्वानी के बीच टैक्सी चलाती हैं। इसके साथ ही बीमार पति की देखभाल भी करनी पड़ती थी और घर का कामकाज का बोझ भी संभालना होता था। फिर भी, सवारियों को रानीखेत से हल्द्वानी और हल्द्वानी से रानीखेत ले जाते समय, रेखा के चेहरे पर कभी थकान नहीं दिखाई देती । समय के साथ, पति की सेहत भी सुधर गई। आज महिलाओं के लिए रेखा का मैसेज यहीं हैं कि औरते घर की चार दिवारी तक ही सीमित ना रहे, अपने लिए जगह बनाए। वो जो करना चाहती हैं, उन्हें करना चाहिए। जब वे आत्मनिर्भर बनेंगी तो उनका परिवार सशक्त होगा। परिवार सशक्त होगा तो समाज और देश सशक्त होगा। इसलिए इस पूरी कड़ी में उनका योगदान बेहद जरूरी है। आशा है की रेखा की कहांनी औरतों को पुरषों से कंधे मिलाने में सहयोग करेगी।