कौन थी पी के रोजी… गूगल ने डूडल के माध्यम से दिया सम्मान

नई दिल्ली: कहते हैे जिस रस्ते को दुनिया सोचने भर से डरती हो, उस पर कोई नजर भी फेर ले तो उसकी हिम्मत की दास्तां कभी भुलाई नहीं जाती। अपने ख्वाइशों को पूरा करने का ख्वाब तो दुनिया भर देखती है, पर कोई खास ही होता है जो उन्हें सच कर दिखाने की हिम्मत रखता है। भारतीय सिनेमा से उठी एक ऐसी ही कहानी को कल दुनिया भर में देखा गया, जब गूगल द्वारा मलयालम फिल्म की पहली अभिनेत्री को उनकी 120वीं जयंती पर श्रद्धांजलि दी गई।

गूगल ने अपने फेमस फीचर डूडल के माध्यम से 10 फरवरी को मलयालम अभिनेत्री पी. के. रोजी को सम्मानित किया। पर ऐसा क्या खास था इस अभिनेत्री के बारे में जो गूगल ने इनकी कहानी पूरी दुनिया तक पहुंचाई।

कौन थी पी.के.रोजी ?

पी. के. रोजी मलयालम की पहली अभिनेत्री और भारतीय सिनेमा की पहली दलित अभिनेत्री थी। रोजी का जन्म 10 फरवरी 1903 में केरल के एक क्रिस्चियन परिवार में हुआ था। केरल में तिरुवनंतपुरम के एक छोटे से गांव नंदनकोड़े में जन्मी रोजी का असल नाम राजम्मा था। दलित परिवार में जन्मी राज्जमा के पिता ऊंचे वर्ग के लोगों के वहां घास काटने का काम किया करते थे। पिता की मृत्यु के बाद गरीबी में जीवन यापन कर रही राजम्मा ने अपने इरादे मुश्किल हालातों के बाद भी डगमगाने नहीं दिए। छोटी सी उम्र में ही रोजी ने अपना सपना पहचान लिया और इसके लिए एक स्थानीय कला विद्यालय में दाखिला लिया। यहां वह पारंपरिक कक्करिसी नट्टकम सीखा करती थी, जिसमें कक्करिसी भगवान शिव और मां पार्वती की कहानी सुनाया करती थी।

अभिनय क्षेत्र में रोजी का प्रवेश

सन् 1928 में कला विद्यालय की तरफ से रोजी ने एक गीत पर अभिनय किया जिसके बाद रोजी को लेकर कक्करिसी ड्रामा मंडली और राजा पार्टी ड्रामा के बीच तकरार देखी गई। इस तकरार का रोजी को फायदा मिला और उनकी स्टार वेल्यू पहले से भी ज्यादा बढ़ गई। इसके कुछ वक्त बाद ही रोजी की जे.सी.डैनियल द्वारा निर्देशित मलयालम फिल्म विगाथाकुमारन में अभिनय की खबर आने लगी। जिस वक्त अभिनय औरतों के लिेए अच्छा पेशा नहीं माना जाता था उस वक्त आई इस खबर ने सबको चौका कर रख दिया।

जब नायर महिला के किरदार में दिखी रोजी

जे.सी. डेनियल, जिन्हें मलयालम सिनेमा का जनक माना जाता है, उन्होंने केरल की पहली फिल्म – विगाथाकुमारन या द लॉस्ट चाइल्ड बनाई। हालांकि यह साफ नहीं पता कि डेनियल रोजी से कैसे मिले पर रोजी के सिवा उनके पास कोई अच्छा विकल्प नहीं था। रोजी ना केवल एक बेहद कुशल कलाकार थीं, बल्कि वह उस समय राज्य में मौजूद बहुत कम अभिनेत्रियों में से एक थीं। रोज़ी ने फिल्म में एक नायर महिला सरोजिनी की भूमिका निभाई थी , जिसके बाद कई उच्च जातियों के लोग नाराज़ नजर आए। उच्च जाति के लोगों ने रोजी का नायर महिला के रूप में किए गए अभिनय का विरोध किया।

सिनेमा और राज्य दोनों से भागने को मजबूर

जेसी डेनियल को पहले से ही कुछ प्रतिक्रियाओं की उम्मीद थी। इसलिए उन्होंने रोजी को अपनी ही फिल्म के प्रीमियर में आने से मना किया था। उसके बाद थिएटर और शहर में दंगे और तोड़फोड़ की खबरें सामने आने लगी। माना जाता है कि ऊंची जाति के लोगों ने रोज़ी के परिवार की झोपड़ी तक जला दी थी। उच्च जाति के पुरुषों द्वारा लगातार उत्पीड़न और बार-बार हमले की घटनाएं सामने आने लगी। आखिरकार, रोजी एक लॉरी में बैठ कर नागरकोइल भाग गई। वहाँ उसने ट्रक ड्राइवर से शादी कर ली जो खुद एक नायर था।

पीके रोजी ने केवल एक ही फिल्म में अभिनय किया, और इसके परिणामस्वरूप उन्हें मजबूरन सिनेमा छोड़ना पड़ा। हालाँकि, उसने ऐसे समय में कई बंधन तोड़े जब समाज इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था। एक लंबे समय के लिए, पीके रोज़ी को गुमनामी में धकेल दिया गया।हालांकि राज्य और देश में दलित राजनीति के रूप में उन्हें फिर से एक पहचान मिली। वह एक ऐसी महिला थी जिसे फिल्म उद्योग द्वारा हिंसक रूप से बहिष्कृत किया गया था, पर आज उस ही महिला को गले लगाने के लिए यह समाज उत्सुक है। निस्संदेह गूगल से मिले सम्मान के बाद आज सारी दुनिया उन्हें पहचान रही है लेकिन फिल्म उद्योग को सभी के लिए अधिक विविध और समावेशी जगह बनाना ही उनको दी गई सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी।

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