कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है, जन के बाद अब संगठन भी छोड़ रहा हाथ का साथ !

नई दिल्ली: चुनावों के खत्म होने के बाद कांग्रेस में उथल पुथल देखने को मिलती है। उत्तराखंड के निकाय चुनाव और दिल्ली में हार के बाद भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। दिल्ली में कांग्रेस की नकारामत्क राजनीति के बारे में करोड़ों लोगों को पता चला, पहले चुनाव सत्ता हासिल करने के लिए होते थे लेकिन अब सत्ता पर काबिज को हटाने के लिए लड़े जा रहे हैं। कांग्रेस ने दिल्ली में उस आप के खिलाफ मोर्चा खोला था, जिसके साथ 2024 लोकसभा में भाजपा के विरोध में चुनाव लड़ा था, हालांकि तीसरी बार सरकार भाजपा ने बनाई।

आजकल शशि थरूर का मुद्दा भी काफी चर्चाओं में रह रहा है। चुनाव विशेषज्ञों का मानना रहा है कि कांग्रेस में उथल-पुथल का कारण संगठन का कमजोर होना है। मजबूती से ज्यादा तकरार ज्यादा दिखती है।

मौजूदा स्थिति में माना जा रहा है कि कांग्रेस में इन दिनों दबी आवाज में तकरार की एक ध्वनि सुनी जा सकती है। कुछ वाकिए एक के बाद एक ऐसे हुए हैं जिन्होंने एक बार फिर न सिर्फ शीर्ष कांग्रेसी नेतृत्व बल्कि कांग्रेस की प्रशासनिक एवं सांगठनिक रणनीतियों पर भी प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

जानकारों का कहना है कि कांग्रेस में प्रशासन एवं संगठन का मतलब क्रमशः राहुल गांधी और के. सी. वेणुगोपाल ही रह गया है। शक्तियों पर एकाधिकार वाली स्थिति बनने पर कांग्रेस में फूट वाली दरारें भी दिख रही हैं। हो सकता है इसका कारण कुछ और हो लेकिन अभी राजनीतिक गलियारों में यही चर्चाएं हैं। समसामयिक कांग्रेस में मोदी-युग के बाद बड़ी फूट पड़ी है लेकिन वेणुगोपाल ने ही सांगठनिक कौशल से पूरी पार्टी को संभाला था और अब उन्हीं के कौशल पर प्रश्न खड़े होने लगे हैं। जिस गति से के.सी. पर प्रश्न खड़े होने लगे थे उतनी ही तीव्र गति से कांग्रेस के पारिस्थिकी तंत्र ने मुद्दे की गंभीरता को भांपते हुए वेणुगोपाल समर्थन में कहानियां प्रसारित कर दीं। लेकिन कांग्रेस अब डीके शिवकुमार, शशि थरूर और राशिद अल्वी का उत्तर नहीं ढूंढ पा रही है।

कर्नाटक में डी के शिवकुमार मुखर होकर प्रदेश की कमान मांग रहे हैं और बगावती सुर अख्तियार कर रहे हैं। कहा जा रहा है ये बगावती सुर प्राथमिक और कुंभ में शामिल होना द्वितीयक कारण है, राहुल गांधी के कर्नाटक में आयोजित हुए निवेश समिट में शामिल न होने का। इसी बीच शशि थरूर ने भी प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा कर दी जिस पर राहुल गांधी ने उन्हें समन कर दिया। केरल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के. सुधाकरण ने उनकी आलोचना कर दी जो अधिक अपमानित करने वाला था क्योंकि थरूर न सिर्फ राजनीतिक कद में बड़े हैं बल्कि पार्टी संगठन में भी सुधाकरण से अधिक मजबूत कैडर पर पकड़ रखते हैं।

बात इतनी बढ़ गई कि शशि को यहां तक कहना पड़ा कि अगर कांग्रेस को उनकी जरूरत नहीं है तो उनके पास अपने विकल्प हैं। इसके बाद राशिद अल्वी के बयान ने तो केसी वेणुगोपाल के कौशल पर उठ रहे प्रश्नों पर सही ठहरा दिया। अल्वी ने कहा कि कांग्रेस में लंबे समय से जमीनी नेताओं को दरकिनार किया जा रहा है, जिससे कांग्रेस को नुकसान हो रहा है। इन सभी प्रकरणों और बयानों ये साफ कर दिया है कि सांगठनिक स्तर पर एक दरार पड़ चुकी है जिसके बड़े होने से पहले ही कांग्रेस उस पर लीपापोती करने की कोशिश कर रही है। लेकिन चुनावों जीत से कोसों दूर होती जा रही भारत के ग्रैंड ओल्ड पार्टी कब तक इस तरह लीपापोती कर अपनी कमियों को छुपा लेगी, कब तक धरातल पर काम करने वाला इनका कार्यकर्ता इन बातों से अछूता रहेगा और सबसे खास कब तक इन दरारों की कीमत कांग्रेस अपनी चुनाव हार के रूप में चुकाती रहेगी?

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